बिल की मुख्य विशेषताएं
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बिल निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) एक्ट, 1991 का स्थान लेता है। यह मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति, वेतन और उन्हें हटाने से संबंधित प्रावधान करता है।
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सीईसी और ईसी की नियुक्ति चयन समिति के सुझाव पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। चयन समिति में प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता/सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे।
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चयन समिति में कोई पद रिक्त होने पर भी उसके सुझाव मान्य होंगे।
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कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक खोजबीन समिति चयन समिति को नामों का एक पैनल प्रस्तावित करेगी। पदों के लिए पात्रता में केंद्र सरकार के सचिव के बराबर पद पर रहने वाला अधिकारी शामिल है (या वह सचिव के बराबर पद पर रहा हो)।
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सीईसी और ईसी का वेतन और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के बराबर होंगी। 1991 के एक्ट के तहत, यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के समान थे।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया पर सरकार का प्रभुत्व हो सकता है, जो उसकी स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
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चयन समिति में रिक्ति होने के बावजूद उसके सुझावों को मंजूर करने से उम्मीदवारों के चयन में सरकारी सदस्यों का प्रभावी रूप से एकाधिकार हो सकता है।
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सीईसी और ईसी का वेतन कैबिनेट सचिव के बराबर करने से सरकारी प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि यह सरकार द्वारा तय किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन संसद के एक कानून के माध्यम से तय किया जाता है, और यह उसके विपरीत है।
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सीईसी और ईसी अर्ध-न्यायिक कार्य भी करते हैं। इन पदों को वरिष्ठ नौकरशाहों तक सीमित करने से अन्य उपयुक्त उम्मीदवार छूट सकते हैं।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
संविधान के अनुच्छेद 324 में कहा गया है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और उतनी संख्या में चुनाव आयुक्त (ईसी) शामिल होंगे, जितने राष्ट्रपति तय करें। भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) मतदाता सूची को तैयार करने और संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है। संविधान में कहा गया है कि राष्ट्रपति सीईसी और ईसी की नियुक्ति करेंगे जोकि संसद के एक कानून के प्रावधानों के अधीन होगा। संविधान सभा की बहस में सीईसी और ईसी की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका पर चर्चा की गई क्योंकि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि चुनाव मशीनरी सरकार के नियंत्रण के बाहर होनी चाहिए।[1] संविधान सभा के सदस्य इस बात पर सहमत हुए थे कि ईसीआई की नियुक्ति की व्यवस्था संसद के विवेक पर छोड़ दी जानी चाहिए।1
1991 में संसद ने निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) एक्ट पारित किया।[2] एक्ट ने सीईसी और ईसी का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान स्तर पर निर्धारित किया। इसमें उनकी नियुक्ति प्रक्रिया का प्रावधान नहीं किया गया था, जिसका निर्णय राष्ट्रपति द्वारा किया जाता रहा।[3]
मार्च 2023 में सीईसी और ईसी की नियुक्ति की समीक्षा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उनकी नियुक्ति केवल कार्यपालिका द्वारा नहीं की जानी चाहिए।3 अदालत ने कहा कि ईसीआई को कार्यपालिका के नियंत्रण से स्वतंत्र होना चाहिए। उसने एक चयन प्रक्रिया को अनिवार्य किया, जो तब तक जारी रहेगी जब तक संसद कानून नहीं बना देती।3 न्यायालय ने निर्देश दिया कि नियुक्ति चयन समिति के सुझाव पर राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए। चयन समिति में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) प्रधानमंत्री, (ii) लोकसभा में विपक्ष के नेता, और (iii) भारत के मुख्य न्यायाधीश। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यावधि) बिल, 2023 को राज्यसभा में 10 अगस्त, 2023 को पेश किया गया।[4] ये 1991 के एक्ट को निरस्त करता है, और सीईसी और ईसीज़ की नियुक्ति की प्रक्रिया और सेवा शर्तों का प्रावधान करता है।
मुख्य विशेषताएं
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चुनाव आयोग: चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्त (ईसी) होंगे। राष्ट्रपति समय-समय पर ईसीज़ की संख्या तय करेंगे।
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आयोग की नियुक्ति: आयोग की नियुक्ति चयन समिति के सुझाव पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। चयन समिति में प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होंगे। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक खोजबीन समिति चयन समिति को पांच नाम सुझाएगी। चयन समिति खोजबीन समिति द्वारा सुझाए गए व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति पर भी विचार कर सकती है।
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पात्रता का मानदंड: सीईसी और ईसी को निम्नलिखित होना चाहिए: (i) उसे ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, (ii) उसके पास चुनावों के प्रबंधन और संचालन का ज्ञान और अनुभव होना चाहिए, और (iii) उसे सरकार के सचिव (या उसके समकक्ष) के पद के बराबर पद पर होना चाहिए या वह ऐसे पद पर रह चुका हो।
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कार्यावधि और पुनर्नियुक्ति: चुनाव आयोग के सदस्य छह साल तक या 65 वर्ष की आयु का होने तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे। आयोग के सदस्यों को दोबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता। अगर किसी ईसी को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो कार्यकाल की कुल अवधि छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकती है।
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वेतन और पेंशन: सीईसी और ईसी का वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें कैबिनेट सचिव के बराबर होंगी। उनके पास उस सेवा की पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करने का विकल्प होगा, जिससे वे पहले संबंधित थे।
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पद से हटाना: बिल संविधान में सीईसी और ईसी को हटाने के निर्दिष्ट तरीके को बरकरार रखता है। सीईसी को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही और उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है। ईसी को केवल सीईसी के सुझाव पर ही हटाया जा सकता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता
संविधान में चुनाव आयोग (ईसीआई) की परिकल्पना एक स्वतंत्र निकाय के रूप में की गई है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसी संस्था को सत्तारूढ़ दल के बाहरी दबावों से पूरी तरह से अलग रखा जाना चाहिए और इसे केवल कार्यपालिका द्वारा नहीं चुना जाना चाहिए।3,[5] संविधान सभा के सदस्यों ने यह भी कहा था कि चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन लोगों को सौंपी जानी चाहिए, जो राजनीतिक प्रभावों और स्थानीय दबावों से मुक्त हैं।1 डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि चुनाव को वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र बनाने के लिए, उन्हें मौजूदा सरकार के हाथों से मुक्त कराया जाना चाहिए।1 सर्वोच्च न्यायालय (2023) ने कहा है कि ईसीआई की कोई भी कार्रवाई, जो राजनैतिक दलों के साथ असमान या मनमाने तरीके से व्यवहार करती है, समानता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती है।3 न्यायिक स्वतंत्रता से संबंधित कई निर्णयों में अदालत ने कहा है कि आयोग की स्वतंत्रता के लिए यह जरूरी है कि सरकार उसकी नियुक्तियों और कार्यो से अलग रहे।[6] बिल में कई प्रावधान ईसीआई की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं।
चयन समिति में सरकार का प्रभुत्व है
अनुच्छेद 324 के तहत सीईसी और ईसी की नियुक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है। सर्वोच्च न्यायालय (2023) ने कहा था कि संविधान सभा का इरादा एक स्वतंत्र चुनाव आयोग की व्यवस्था करना था, जिसकी नियुक्ति कानून के जरिए रेगुलेटेड हो और कार्यपालिका द्वारा तय न की जाए।3 अदालत ने कहा कि जब तक संसद ऐसी प्रक्रिया के लिए कानून नहीं बनाती, सीईसी और ईसी चयन समिति के सुझाव पर नियुक्त किए जाएंगे। इस समिति में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होंगे।3
बिल निर्दिष्ट करता है कि चयन समिति में प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होंगे। इस प्रकार चयन समिति में तत्कालीन सरकार के सदस्यों का बहुमत है, जो ईसीआई की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
उल्लेखनीय कि कई अन्य स्वतंत्र निकायों जैसे मुख्य सूचना आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुखों की नियुक्ति इस बिल में प्रस्तावित पैनल के समान एक पैनल द्वारा की जाती है।[7] हालांकि संघ लोक सेवा आयोग और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जैसे संवैधानिक निकायों के लिए नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ईसीआई अपने कार्यों और कर्तव्यों के कारण संवैधानिक व्यवस्था में उच्च स्थान पर है। यह इस तथ्य से ज़ाहिर होता है कि ईसीआई की नियुक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन की जाती हैं।3
तालिका 1: चयन समिति की संरचना के लिए विभिन्न आयोगों/न्यायालयों के सुझाव
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निकाय |
सदस्य |
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गोस्वामी समिति (1990) |
सीईसी के लिए: राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश + लोकसभा में विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) के परामर्श से नियुक्त। ईसी के लिए: राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश + लोकसभा में विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) + सीईसी के परामर्श से नियुक्त। |
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संविधान (सत्तरवाँ संशोधन) बिल 1990* |
राज्यसभा के सभापति + लोकसभा अध्यक्ष + लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता)। सीईसी को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया। |
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संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट (2002) |
प्रधानमंत्री + लोकसभा में विपक्ष के नेता + राज्यसभा में विपक्ष के नेता + लोकसभा अध्यक्ष + राज्यसभा के उपसभापति। |
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विधि आयोग (2015) |
प्रधानमंत्री + लोकसभा में विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) + मुख्य न्यायाधीश। |
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सर्वोच्च न्यायालय (2023) |
प्रधानमंत्री + लोकसभा में विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) + मुख्य न्यायाधीश। |
नोट: * राज्यसभा में पेश और 1994 में सदन द्वारा वापस लिया गया।
स्रोत: रिट याचिका (सी) संख्या 104, 2015, अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ, सर्वोच्च न्यायालय, 2 मार्च, 2023; पीआरएस।
तालिका 2: विभिन्न देशों में चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया
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देश |
नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी |
चयन समिति/प्रक्रिया |
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दक्षिण अफ्रीका |
राष्ट्रपति |
संवैधानिक न्यायालय के प्रेज़िडेंट (चेयरपर्सन), मानवाधिकार न्यायालय के प्रतिनिधि, लैंगिक समानता आयोग के प्रतिनिधि और पब्लिक प्रॉसीक्यूटर। |
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युनाइटेड किंगडम |
सदन की मंजूरी पर सम्राट |
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युनाइटेड स्टेट्स |
राष्ट्रपति |
आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इसकी पुष्टि सीनेट द्वारा की जाती है। |
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कनाडा |
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हाउस ऑफ कॉमन्स के एक प्रस्ताव द्वारा नियुक्त। |
स्रोत: रिट याचिका (सी) संख्या 104, 2015, अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ, सर्वोच्च न्यायालय, 2 मार्च, 2023; पीआरएस।
रिक्ति या गठन में त्रुटि के बावजूद चयन समिति के सुझाव मान्य होंगे
बिल चयन समिति की वैधता को बरकरार रखता है, भले ही समिति में रिक्ति हो या उसके गठन में कोई त्रुटि। वैधानिक निकायों में सदस्यों के चयन के लिए कुछ अन्य कानूनों में भी ऐसे ही प्रावधान मौजूद हैं।[8] हालांकि इस समिति में रिक्ति केवल कुछ परिस्थितियों में ही होगी। समिति में तीन सदस्यों में से प्रधानमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री का पद रिक्त नहीं हो सकता। लोकसभा भंग होने पर लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद रिक्त हो सकता है। इस प्रकार कोई रिक्ति आम चुनाव से पहले ही उत्पन्न हो सकती है, और ऐसे मामले में, चयन समिति में विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल के सदस्य शामिल होंगे।
चयन समिति खोजबीन समिति के सुझावों को नजरअंदाज कर सकती है
बिल के तहत, चयन समिति खोजबीन समिति द्वारा सुझाए गए पांच लोगों के पैनल में से नामों का चयन करेगी। चयन समिति खोजबीन समिति द्वारा सुझाए गए नामों की बजाय किसी अन्य उम्मीदवार का चयन कर सकती है। एक तरफ यह खोजबीन समिति की भूमिका को कमजोर कर सकता है जो विशेष रूप से सक्षम और योग्य उम्मीदवारों की तलाश के लिए गठित की गई है। दूसरी तरफ प्रावधान यह सुनिश्चित कर सकता है कि सीईसी और ईसी पदों के लिए जिन उम्मीदवारों का चयन किया जाता है, उन्हें सिर्फ चयन समिति द्वारा नियंत्रित न किया जाए, जिस समिति में सिर्फ लोक सेवक ही मौजूद हैं।
सीईसी और ईसी का वेतन सरकार तय करेगी
1991 के एक्ट के तहत सीईसी और ईसी का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर है।2 बिल सीईसी और ईसी के वेतन को सरकार के कैबिनेट सचिव के बराबर करता है। दोनों वेतन वर्तमान में बराबर हैं लेकिन उन्हें अलग-अलग तरह से रेगुलेट किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 125 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन संसद के एक कानून द्वारा तय किया जाता है। हालांकि कैबिनेट सचिव का वेतन केंद्रीय वेतन आयोग के सुझाव पर सरकार द्वारा तय किया जाता है।[9] इस प्रकार बिल के तहत सीईसी और ईसी के वेतन निर्धारण में कार्यपालिका का अधिक नियंत्रण हो सकता है।
पात्रता मानदंड से उपयुक्त उम्मीदवार बाहर हो सकते हैं
बिल के तहत केवल वही व्यक्ति जो सरकार के सचिव के बराबर पद पर है या उस पद पर रह चुका है, सीईसी या ईसी बनने के लिए पात्र होगा। प्रशासनिक कार्यों के अलावा चुनाव आयोग अर्ध-न्यायिक क्षमता में भी कार्य करता है।3,5 यह संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता पर निर्णय लेता है और प्रतीकों के आवंटन, या राजनीतिक दलों के पंजीकरण से उत्पन्न होने वाले विवादों पर फैसला लेता है।[10],[11] सीईसी और ईसी के पात्रता मानदंड को लोक सेवकों तक सीमित करके, बिल अन्य योग्य व्यक्तियों को इन पदों से बाहर कर सकता है।
अन्य देशों में ईसीआई के समकक्ष निकायों के सदस्यों के पास व्यापक पात्रता मानदंड हैं।[12] उदाहरण के लिए युनाइटेड स्टेट्स में सदस्यों को उनकी नियुक्ति के समय निर्वाचित या नियुक्त अधिकारी नहीं होना चाहिए, या कार्यकारी, विधायी या न्यायिक शाखा में संघीय सरकार के पदों पर नहीं रहना चाहिए। दक्षिण अफ्रीका में चुनाव आयोग पांच सदस्यीय निकाय है जिसमें से एक न्यायाधीश होना चाहिए। सभी सदस्यों को दक्षिण अफ्रीकी नागरिक होना चाहिए जिनका हाई पार्टी-राजनीतिक प्रोफ़ाइल न हो।
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से जुड़े अन्य मुद्दे
सर्वोच्च न्यायालय और गोस्वामी समिति (1990) सहित कई समितियों ने ईसीआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले सुझाव दिए हैं। ये सुझाव निम्नलिखित से संबंधित हैं: (i) सीईसी और ईसी को हटाए जाने की प्रक्रिया, और (ii) ईसीआई की प्रशासनिक स्वतंत्रता। बिल में इन सुझावों को शामिल नहीं किया गया है।
सीईसी और ईसी को हटाने से संबंधित प्रावधान एक समान नहीं
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत सीईसी को सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की ही तरह उसके पद से हटाया जा सकता है।[13] सीईसी के सुझाव पर ईसी को पद से हटाया जा सकता है। बिल संविधान के तहत उन्हें पद से हटाने के लिए इन आधारों को बरकरार रखता है। हालांकि सीईसी और ईसी को हटाने की प्रक्रिया में समानता की कमी को लेकर चिंताएं जताई जा सकती हैं।
1991 तक ईसीआई में कोई ईसी नहीं होता था।5 ईसी की नियुक्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय (1995) ने सीईसी और ईसी के बीच हेरारकी की समीक्षा की और कहा कि ईसी को सीईसी के बराबर माना जाएगा।5 बिल सीईसी और ईसी को समान दर्जा देता है जिसमें दोनों पदों पर समान वेतन मिलेगा और निर्णय लेने में समान भागीदारी होगी। 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की समीक्षा की और कहा कि वह इन दोनों को एक तरीके से हटाने को अनिवार्य नहीं कर सकता क्योंकि संविधान में भी अलग-अलग तरीके से उन्हें हटाए जाने की प्रक्रियाओं का प्रावधान है। उसने कहा कि ईसी को उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुरक्षा प्रदान करना, संसदीय विचार विमर्श का मामला है। ईसी को हटाने की प्रक्रिया में किसी भी तरह के बदलाव के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
आयोग की प्रशासनिक स्वतंत्रता
गोस्वामी समिति और ईसीआई ने चुनाव आयोग के लिए स्वतंत्र सचिवालय का सुझाव दिया था, जैसा कि लोकसभा, राज्यसभा, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में होते हैं।[14],[15] सर्वोच्च न्यायालय (2023) ने भी ईसीआई के कामकाज के लिए स्वतंत्र सचिवालय के महत्व पर जोर दिया था।
[2]. The Election Commission (Conditions of Service of Election Commissioners and Transaction of Business) Act, 1991.
[3]. Anoop Baranwal v Union of India, WP (Civil) 104 of 2015, Supreme Court of India, March 2, 2023.
[4]. The CEC And Other Election Commissioners (Appointment, Conditions Of Service And Term Of Office) Bill, 2023.
[5]. T.N. Seshan, CEC of India vs Union of India and others, WP (Civil) 805 of 1993, Supreme Court of India, July 14, 1995.
[6]. Supreme Court Advocates-on-Record - Association and another vs Union of India, WP (Civil) 1303 of 1987, October 6 1993 and Special Reference Case 1 of 1998, Supreme Court of India, October 28, 1998.
[8]. Electricity Act, 2003, The Major Port Authorities Act, 2021, and The National Dental Commission Act, 2023.
[9]. Report of the Seventh Central Pay Commission, November 2015.
[10]. Article 103 and 192, The Constitution of India.
[11]. The INC (I) vs Institute of Social Welfare and others, Civil Appeal 3320-21 of 2001, Supreme Court, May 10 2002.
[12]. Section 306(3), Federal Election Campaign Act, 1971, and Section 6, Electoral Commission Act, 1996.
[13]. Article 124, The Constitution of India.
[14]. Report of the Committee on Electoral Reforms (Goswami Report), Ministry of Law and Justice, May 1990.
[15]. Proposed Election Reforms, Election Commission of India, December 19, 2018.
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